विश्व साक्षरता दिवस
The theme of International Literacy Day 2020 according to the UN is
"Literacy teaching and learning in the COVID-19 crisis and beyond."
आज के समय में व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान से अधिक महत्वपूर्ण शिक्षा (साक्षरता) को माना जाता हैं | इसलिए साक्षरता दिवस मनाने का लक्ष्य उन लोगों को शिक्षा के साथ जोड़ना जो अब तक इससे वाचित रहे हैं | कई देशो में साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए मिशन योजनाए चलाई जा रही है | क्योकि जब तक देश की अधिकांश आबादी साक्षर नही हो जाती हैं तब तक गरीबी, अंधविश्वास, लिंग भेद, जनसंख्या बढ़ोतरी जैसी सामजिक समस्याओं पर नियंत्रण पाना असम्भव हैं | भारत में साक्षरता स्तर को मजबूत बनाने के लिए साकार भारत मिशन, सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मिल प्रोढ़ शिक्षा जैसे साक्षरता कार्यक्रम कई वर्षो से चल रहे हैं |
भारत प्राचीन समय में विश्व गुरु कहलाता था, मगर आज हालत यह हैं कि कुल आबादी का एक चौथाई तक़रीबन 30 करोड़ लोग आज भी अशिक्षित हैं | इस असफलता के पीछे हमारी सरकारों और समाज दोनों की गलतियाँ बराबर जिम्मेदार हैं | 2011 में हुई जनगणन के आकड़ो पर हम नजर डाले तो मात्र 4 फीसदी ही महिलाएँ साक्षर हो पाई हैं | 2001 की जनगणना में महिलओं की साक्षरता दर 60 फीसदी के आस-पास थी जो अब 64 तक ही बढ़ पाई हैं | गणतंत्र राष्ट्र के शिक्षित नागरिक ही अपने कर्तव्यो और अधिकारों के लिए जागरूक होकर इनका सही उपयोग कर सकता हैं | शिक्षित युवाओं द्वारा सक्रिय भूमिका निभाने से वर्तमान स्थति में काफी हद तक सुधार लाया जा सकता हैं | साक्षरता के महत्व को समझते हुए International Literacy Day की पहल शिक्षा के प्रचार-प्रचार में अहम हथियार हैं |
आज जो भी देश विकास व् तकनीक के विषय में सर्वोच्च हैं उनका आधार मूलत शिक्षा ही हैं | सामजिक द्रष्टि से भी शिक्षा जरुरी हैं क्योकि पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही समाज के प्रति जिम्मेदारियों को समझते हुए सदुपयोग कर सकता हैं | हमारे देश की अधिकतर आबादी गाँवों में निवास करती हैं | जहाँ शिक्षा का आज भी निम्न स्तर हैं, जिस कारण लोग जाति धर्म जैसे बन्धनों में खुद को बांधे रखते हैं | साक्षरता व्यक्ति को अँधेरे से बाहर निकालकर एक उज्जवल भविष्य की राह दिखाने का कार्य करता हैं |
साक्षरता दर बढ़ाने के लिए किये गये प्रयासों में हमारे देश व् विभिन्न राज्यों की बात करे तो आज सभी राज्यों में अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम को शिक्षा के अधिकार के रूप में जगह दी गई हैं | लेकिन एक कानून को मौलिक अधिकार बना देने के बावजूद क्या 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चे स्कुलो तक पहुच पाए. क्या बाल श्रम पर पूर्ण रोक लग पाई | ये सवाल हमारे दिलों दिमाग को तब तक कोसते रहेंगे, जब तक समाज के हर तबके का व्यक्ति शिक्षा के प्रति जाग्रत नही हो जाता | जरुरत हैं इस तरह के कानूनों को आमजन तक पहुचाने की ओर उन्हें इसके प्रति जागरूक करने की | तभी असल में विश्व साक्षरता दिवस मनाने का उद्देश्य सच्चे अर्थो में साकार होगा |
Very nice informations
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