कारगिल विजय दिवस
कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को उन शहीदों की याद में मनाया जाता हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया और वीरगति को प्राप्त हुए. इस कार्य के लिए भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन विजय’ प्रारंभ किया गया था और ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता के बाद इसे ‘कारगिल विजय दिवस’ का नाम दिया गया.
कारगिल विजय दिवस इतिहास
सन 1971 में हुए भारत – पाकिस्तान युद्ध के बाद लम्बे समय तक दोनों देशों की सेनाएं आमने – सामने नहीं आई और शांति व्यवस्था कायम रही और इस शांति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए सियाचिन ग्लेशिअर के आस – पास के पर्वतों की चोटियों पर मिलिट्री चेक पोस्ट की स्थापना की गयी और इसका परिणाम हमें सन 1980 में हुई मिलिट्री मुठभेड़ के रूप में मिला.
सन 1990 के दौरान कश्मीर में फिर कुछ अवांछित गतिविधियों के कारण टकराव हुए और इनमे से कुछ पाकिस्तान के द्वारा समर्थित (Supported) थे (Citation आवश्यक). इस दशक के सन 1998 में दोनों ही देशों के द्वारा न्यूक्लियर परिक्षण किये गये, जिसने युद्ध – स्थिति वाले माहौल को हवा देकर और तेज कर दिया. इस स्थिति को ख़त्म करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी, सन 1999 में लाहौर डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर किये, जिसके अनुसार दोनों देश कश्मीर मुद्दे पर शांति पूर्वक हल के लिए प्रयास करने को राज़ी हुए. सन 1998 – 99 में ठंडी के मौसम में पाकिस्तानी आर्म्ड फ़ोर्स के कुछ तत्व गुप्त और बनावटी रूप से ट्रेनिंग लेते हुए पाए गये, साथ ही पाकिस्तानी फ़ौज का एक दल और पेरामिलिट्री फ़ोर्स [ कथित तौर पर मुजाहिदीन ] भारतीय क्षेत्र की लाइन ऑफ़ कंट्रोल [ LOC ] की ओर पाए गये. पूछताछ के दौरान पता चला कि उनके इस ऑपरेशन का नाम हैं – ‘ऑपरेशन बद्र’. इसका उद्देश्य था – कश्मीर और लद्दाख के बीच की लिंक को तोडना, जिससे भारतीय सेना सियाचिन ग्लेशिअर से पीछे हट जाये और पाकिस्तान भारतीय सरकार को कश्मीर मुद्दे पर अपनी बातें मनवाने के लिए दबाव बना सकें. इसके अलावा पाकिस्तान का यह भी मानना था कि यदि इस मुद्दे पर और कोई टेंशन खड़ा होगा तो यह मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बन जाएगा और इस पर कोई हल जल्द ही प्राप्त हो पाएगा. इसके अलावा एक लक्ष्य यह भी होगा कि पिछले 2 दशक से दबे हुए विद्रोह को भड़का दिया जाये.
शुरुआत में प्रारंभिक पूछताछ के बाद भारतीय फ़ौज को लगा कि ये घुसपैठिये जिहादी हैं और सेना इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर निकाल देगी. परन्तु बाद में LOC के आसपास की गतिविधियों से और घुसपैठियों द्वारा अपनाई गयी योजना पता चलने पर हमारी सेना को यह पता चला कि ये छोटी – मोटी मुठभेड़ नहीं हैं, इनका बहुत बड़े पैमाने पर आक्रमण करने का प्लान हैं.
पाकिस्तान की इस योजना के पता चलने पर भारतीय सरकार ने ऑपरेशन विजय के रूप में इसका उत्तर दिया, जिसमे लगभग 2 लाख भारतीय सैनिकों ने भाग लिया और अंत में 26 जुलाई, 1999 को औपचारिक रूप से युद्ध विराम हुआ और इसी दिन को हम ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं.
इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की बलि दे दी.
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