नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती
राष्ट्रीय आंदोलन के पराक्रमी नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 23 जनवरी 2024 को 127वीं जयंती है | इस खास दिन को पराक्रम दिवस (Parakram Diwas) के रूप में मनाया जाता है. देश की आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेता जी का जन्म साल 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था | नेताजी की जिंदगी और देश के लिए उनका त्याग आज भी युवाओं के लिए प्रेरणादायक है |
सुभाषचंद्र जी का जन्म कटक, उड़ीसा के बंगाली परिवार में हुआ था , उनके 7 भाई और 6 बहनें थी. अपनी माता पिता की वे 9 वीं संतान थे, नेता जी अपने भाई शरदचन्द्र के बहुत करीब थे. उनके पिता जानकीनाथ कटक के महशूर और सफल वकील थे, जिन्हें राय बहादुर नाम की उपाधि दी गई थी | नेता जी को बचपन से ही पढाई में बहुत रूचि थी, वे बहुत मेहनती और अपने टीचर के प्रिय थे. लेकिन नेता जी को खेल कूद में कभी रूचि नहीं रही. नेता जी ने स्कूल की पढाई कटक से ही पूरी की थी. इसके बाद आगे की पढाई के लिए वे कलकत्ता चले गए, वहां प्रेसीडेंसी कॉलेज से फिलोसोफी में BA किया. इसी कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेसर के द्वारा भारतियों को सताए जाने पर नेता जी बहुत विरोध करते थे, उस समय जातिवाद का मुद्दा बहुत उठाया गया था. ये पहली बार था जब नेता की के मन में अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू हुई थी ।
नेता जी सिविल सर्विस करना चाहते थे । अंग्रेजों के शासन के चलते उस समय भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत मुश्किल था, तब उनके पिता ने इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया. इस परीक्षा में नेता जी चोथे स्थान में आये, जिसमें इंग्लिश में उन्हें सबसे ज्यादा नंबर मिले । नेता जी स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे, वे उनकी द्वारा कही गई बातों का बहुत अनुसरण करते थे । नेता जी के मन में देश के प्रति प्रेम बहुत था वे उसकी आजादी के लिए चिंतित थे, जिसके चलते 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की नौकरी ठुकरा दी और भारत लौट आये ।
नेता सुभाष चंद्र बोस जी के बारे में रोचक तथ्य
वर्ष 1942 में नेता सुभाष चंद्र बोस जी हिटलर के पास गए और भारत को आजाद करने का प्रस्ताव उसके सामने रखा, परंतु भारत को आजाद करने के लिए हिटलर का कोई दिलचस्पी नहीं था और उसने नेताजी को कोई भी स्पष्ट वचन नहीं दिया था।
सुभाष चंद्र बोस जी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह जी को बचाना चाहते थे और उन्होंने गांधी जी से अंग्रेजों को किया हुआ वादा तोड़ने के लिए भी कहा था, परंतु वे अपने उद्देश्य में नाकाम रहे।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी ने भारतीय सिविल परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया था, परंतु उन्होंने देश की आजादी को देखते हुए अपने इस आरामदायक नौकरी को भी छोड़ने का बड़ा फैसला लिया।
नेताजी को जलियांवाला बाग हत्याकांड के दिल दहला देने वाले दृश्य ने काफी ज्यादा विचलित कर दिया और फ़िर भारत की आजादी संग्राम में खुद को जोड़ने से रोक ना सके।
वर्ष 1943 में बर्लिन में नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंट्रल से सकुशल स्थापना की।
वर्ष 1943 में ही आजाद हिंद बैंक ने 10 रुपए के सिक्के से लेकर 1 लाख रुपए के नोट जारी किए थे और एक लाख रुपए की नोट में नेता सुभाष चंद्र जी की तस्वीर भी छापी गई थी।
नेता जी ने ही महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था।
सुभाष चंद्र बोस जी को 1921 से लेकर 1941 के बीच में 11 बार देश के अलग-अलग कैदखाना में कैद किया गया था।
नेता सुभाष चंद्र बोस जी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में दो बार अध्यक्ष के लिए चुना गया था।
नेता सुभाष चंद्र बोस जी की मृत्यु आज तक रहस्यमई बनी है और इस पर से आज तक कोई भी पर्दा नहीं उठ सका है और यहां तक कि भारत सरकार भी इस विषय पर कोई भी चर्चा नहीं करना चाहती है।
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