Stay Home Reader's Books for Primary
Here providing some reading material (Stories) for kids which will be
beneficial for the students of class 1 to 5 during
the lockdown.
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विश्व तंबाकू निषेध दिवस
हर वर्ष देशभर में 31 मई को नो टोबैको डे यानी विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को तंबाकू सेवन से होने वाले नुकसानों के बारे में जागरूक किया जाता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के द्वारा इस दिन की शुरुआत साल 1987 में की गई थी। तंबाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है। तंबाकू या फिर बीड़ी, सिगरेट का नशा करने से फेफड़ों को भारी नुकसान पहुंचता है। यही वजह है कि इन चीजों से दूरी बनाकर रखना चाहिए।
विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2021 थीम : “छोड़ने के लिए प्रतिबद्ध” हैं.
वर्ल्ड नो टोबैको डे का उद्देश्य लोगों को धूम्रपान से होने वाले नुकसान को लेकर जागरुक करना है। क्योंकि धूम्रपान से कैंसर का खतरा होता है, ये लाइन तंबाकू और सिगरेट की डिब्बियों पर चेतावनियों के रूप में लिखी होती हैं, लेकिन इसके बाद भी लोग इन चीजों का सेवन करते जाते हैं, जो आपको कई गंभीर बीमारियों की चपेट में ला सकती है।
गुजरे एक वर्ष में कोविड महामारी में इतने उतार चढ़ाव आए हैं कि निश्चित रूप से यह कह पाना मुश्किल है कि इसका प्रकोप अभी कितने दिन और रहेगा। इस महामारी की दूसरी लहर और ऑक्सीजन की कमी से टूटती सांसों ने फेफड़ों की सेहत दुरुस्त रखने की जरूरत नए सिरे से बताई है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो धूम्रपान करके अपने फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों में कोविड की गंभीरता और इससे मौत का जोखिम 50 फीसदी ज्यादा होता है।
डब्ल्यूएचओ ने कहा- धूम्रपान छोड़ देने में ही भलाई
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधनोम घेब्रेयेसस 28 मई को जारी एक विज्ञप्ति में कहते हैं कि धूम्रपान करने वालों में कोरोना की गंभीरता और इससे मौत होने का जोखिम 50 फीसदी तक ज्यादा होता है, इसलिए कोरोना वायरस के जोखिम को कम करने के लिए धूम्रपान छोड़ देने में ही भलाई है। धूम्रपान की वजह से कैंसर, दिल की बीमारी और सांस की बीमारियों का जोखिम भी बढ़ जाता है।
महामारी में धूम्रपान से कहें ना
इस संबंध में नारायणा अस्पताल गुरुग्राम में कंसल्टेंट एंड सर्जन, हेड एंड नेक ऑन्कोलॉजी डॉक्टर शिल्पी शर्मा बताती हैं, ''आज के दौर में जो लोग धूम्रपान करते हैं, उन्हें कोविड महामारी को इस लत को छोड़ने के एक और कारण के रूप में देखना चाहिए। उन्हें कोविड की गंभीरता से जूझ रहे और फेफड़ों की क्षमता खो रहे मरीजों के बारे में जानकारी लेकर स्वस्थ फेफड़ों के महत्त्व को समझना चाहिए, और अपने फेफड़ों को इस धीमे जहर से बचाने का प्रण लेना चाहिए।''
इन खतरों से खुद को बचाएं
एक्शन कैंसर अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट, हेड एंड नेक, ब्रेस्ट एंड थोरैसिक ऑन्को सर्जरी यूनिट डॉक्टर राजेश जैन के अनुसार ''कोविड या फेफड़ों से संबंधित किसी भी संक्रमण के सन्दर्भ में सबसे पहले यह समझें कि फेफड़े जितने स्वस्थ होंगे, संक्रमित व्यक्ति के ठीक होने की क्षमता भी उतनी होगी। ऐसे में जाहिर है कि धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के फेफड़े तुलनामक रूप से कमजोर होंगे तो कोविड संक्रमण के बाद होने वाले गंभीर निमोनिया का अधिक जोखिम होगा।''
तंबाकू के सेवन करने से सेहत को होने वाले 3 बड़े नुकसान
तंबाकू के सेवन से आंखें कमजोर होती हैं।
पढ़ने की आदत मे कैसे सुधार करे
हमने बचपन से यह सुना है कि किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती है| यह जानने के बावजूद बहुत कम लोग अपने रीडिंग हैबिट को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना पाते हैं| आज हम आपको बताएँगे कि पढ़ने की आदत यानि रीडिंग हैबिट को कैसे विकसित किया जा सकता है| और यह आपके लिए ईस लोकडाउन के समय मे काफी बेह्तर साबित हो सकता है ।
पढ़ना न सिर्फ एक अच्छी आदत है बल्कि यह एक तरीका भी है जो हमारे रचनात्मक सोंच और प्रेरणा को एक नई दिशा प्रदान करता है| हमने बचपन से यह सुना है कि किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती है| यह जानने के बावजूद बहुत कम लोग अपने रीडिंग हैबिट को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना पाते हैं| खास तौर पर यदि बात की जाए छात्रों की तो वह भी अपने रीडिंग स्किल्स पर कुछ खास ध्यान नहीं दे पाते हैं| जबकि रीडिंग हैबिट से कितने फायदे हैं वह हमने पिछले लेख में काफी अच्छी तरह समझाया है| आज हम आपको बताएँगे कि पढ़ने की आदत यानि रीडिंग हैबिट को कैसे विकसित किया जा सकता है |
1. रोज़ थोड़ा समय निकालें:
पढ़ने की आदत यदि आपमें बिलकुल नहीं है तो शुरुआत करें, लॉकडाउन (कोरोना काल) मे बहुत समय मिल रहा है तो दिन मे कम से कम 15 से 20 मिनट रोज़ किताबों को देने की कोशिश करे, अपनी इस नई शुरुआत के लिए सबसे पहले अपने रीडिंग हैबिट को अपने किसी ऐसे काम के साथ शुरू करें जिसे आप रोज़ करते हैं। जैसे- जब आप चाय या कॉफ़ी पी रहे हों या जब आप सोने जा रहे हों। दरअसल जब आप रोज़ एक ही समय में किताबें पढ़ना शुरू करेंगे तो कुछ समय बाद आपका दिमाग खुद उस समय को किताबें पढ़ने के लिए तैयार कर देगा तथा आप खुद कुछ समय बाद महसूस करेंगे कि यदि आपने पुरे दिन में रोज़ 10 मिनट कर के यदि चार बार किसी बुक को पढ़ा है तो पुरे दिन में अब आप 40 मिनट अपने रीडिंग हैबिट को सुधारने के लिए निकाल रहे हैं।
2. शुरुवात अपने पसंद की किताबों से करें :
रीडिंग हैबिट्स को विकसित करने का सबसे सरल तरीका यह है कि आप अपने पसंद की किताबों को पढ़ना शुरू करें| कुछ ऐसी किताबों से शुरुवात करें जो आपको अच्छी लगती हैं| यदि आपने किसी किताब को पढ़ना शुरू किया है और वह आपको ज्यादा दिलचस्प नहीं लग रही है तो ऐसे परिस्तिथि में आप अपने पसंद की किताब का चयन करें पढ़ने के लिए| छात्र अपने रीडिंग स्किल्स को अच्छी करने के लिए अपने अकादमिक बुक्स में जो सबसे पसंदीदा विषय है उससे शुरू कर सकते हैं|
3. हमेशा एक किताब साथ रखें :
यदि आप अपने साथ हमेशा एक बुक रखेंगे तो आप कभी बोरियत महसूस नहीं करेंगे| आज-कल ऐसे काफी एप्लीकेशन हैं जिनके ज़रिये आप अपने फ़ोन में भी अच्छी किताबें पढ़ सकते हैं| यदि आपका समय अधिकतर ट्रेवल में बीतता है तो आप उस समय भी किसी अच्छे किताब की मदद से अपना समय अच्छी तरह बिता सकते हैं| दरअसल इन छोटी-छोटी आदत से ही आप अपने रीडिंग हैबिट को अच्छी कर सकते हैं|
4. पुस्तकालया क्लब से जुड़ें :
ऐसे किसी ग्रुप से जुड़ें जिनमें आपके पसंद की किताबें शामिल हों, इससे आपको उन किताबों को पढ़ने और अपने ग्रुप में उससे जुड़ी बातों पर चर्चा करने में रूचि बढ़े| आप चाहें तो खुद के कुछ अच्छे दोस्तों के साथ अपना एक ग्रुप बना सकते हैं और एक निश्चित समय तय कर लें कि इस अवधि तक आपको एक किताब पढ़ कर उसके टॉपिक पर ग्रुप में डिस्कशन करना है| छात्र चाहें तो अपने अकादमिक विषय में से किसी एक विषय का चयन कर के भी यह कर सकते हैं| इससे आपकी रीडिंग हैबिट के साथ-साथ आपकी उस विषय पर अच्छी पकड़ भी बनती जाएगी|
5. किताबों कि सूचि तैयार करें:
किताबों की सूचि तैयार करने से आपको अपने रीडिंग हैबिट के लिए ज्यादा मेहनत की ज़रूरत नहीं पड़ेगी| जैसे कि यदि आपको किसी किताब को पढ़ कर ख़तम करने में 2 दिन बचें हैं यदि आपको पता होगा कि इसके बाद मुझे दूसरी किताब कौन सी पढ़नी है और कितने समय में वह समाप्त करनी है तो यह प्रक्रिया आपके लिए आसान होगी| दूसरी ओर यदि आपने कुछ तय ही नहीं किया है कि आपके उस किताब के ख़तम होने के बाद क्या पढ़ना है तो आपके रोज़ किताब पढ़ने की दिनचर्या में फर्क पड़ सकता है| साथ ही साथ अगर आपको समझ नहीं आ रहा कि आपको कैसी बुक्स पढ़नी चाहिए तो इसके लिए अपने रूचि के अनुसार आप ऑनलाइन काफी किताबें खोज सकते हैं या इसके लिए आप अपने दोस्तों से भी मदद ले सकते हैं|
6. विद्यालया लाइब्रेरी तथा ऑन लाइन साइट्स का ईस्तेमाल करें :
निष्कर्ष : इस आर्टिकल में बताए इन टिप्स के अनुसार यदि आप अपने रीडिंग स्किल्स को विकसित करने की शुरुवात करें तो बड़े आसानी से आप इसमें सफलता प्राप्त कर सकते हैं|
स्कूल के समय का सही सदुपयोग कर अपने जीवन को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचाया जा सकता है लेकिन यह तभी संभव है जब आप अपने पढ़ाई और करियर के लिए एक योजना के साथ आगे बढ़े और अच्छे अंक प्राप्त करें. आज इस आर्टिकल में हम कुछ ऐसे टिप्स बताने जा रहे हैं जो आपके स्कूल में अच्छे ग्रेड प्राप्त करने में काफी मददगार साबित हो सकता है.
यदि आप अभी स्कूल में हैं तो यकीन मानिए कि यह आपके शैक्षणिक जीवन में सबसे अच्छा और यादगार समय है. यह समय आपके जीवन में काफी अनमोल है, आपका पूरा भविष्य आपके सामने है आप इस समय का सही सदुपयोग कर अपने जीवन को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचा सकते हैं. लेकिन यह तभी संभव है जब आप अपने पढ़ाई और करियर के लिए एक पूरी योजना के साथ आगे बढ़े और अच्छे अंक प्राप्त करें. आज इस आर्टिकल में हम कुछ ऐसे टिप्स बताने जा रहे हैं जो आपके स्कूल में अच्छे ग्रेड प्राप्त करने में काफी मददगार साबित हो सकता है:-
1. ओर्गेनाइजड रहें,
2. मदद लेने से पीछे न हटें,
3. नोट्स बनाएं,
4. कक्षा में हमेशा अलर्ट रहें,
5. अपने गोल्स को कभी न भूलें.
पढ़ना किसी दूसरे व्यक्ति के मन के ज़रिये सोचने का एक साधन है:
यह आपको अपने सोच को विस्तृत करने के लिए बाध्य करता है।
Observing Anti Terrorism Day on 2021
Anti Terrorism Day 2021 : The day spread awareness about the violence caused by the terrorists. Due to COVID-19 pandemic, it will be observed with precautions. MHA has advised that 'Anti-Terrorism Pledge" may be taken solemnly by the Officials in their rooms/offices itself, keeping in view the safety of participants and organisers and avoiding public gatherings.
On 21 May, every year Anti Terrorism Day is observed to provide knowledge to the youth about terrorism, its impact on human suffering, and lives. This day also makes people aware of an anti-social act of terrorism. Therefore you are requested to take the oath mentioned below sincerely.
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस
हर साल 15 मई को परिवार की अहमियत बताने के मकसद से अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है. आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी (Life) में परिवार (Family) की अहमियत और भी बढ़ जाती है. समाज की परिकल्पना परिवार के बिना अधूरी है. ऐसे में परिवार ही हैं जो लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. परिवार हमारे रिश्तों को न सिर्फ मजबूती देता है, बल्कि हर गम और खुशी के मौके पर हमारे साथ खड़ा भी होता है, यही वजह है कि हमारे जीवन में परिवार का बहुत महत्व है. आज के इस आधुनिक जीवन में भी परिवार की अहमियत कम नहीं हुई है.
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (11 मई)
भारत में प्रत्येक वर्ष 11 मई को ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस ऑपरेशन शक्ति के परमाणु परीक्षण के पहले पांच टेस्ट की वर्षगांठ मनाने के लिए मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष इस दिन को अलग-अलग थीम से मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्र गर्व के साथ अपने वैज्ञानिको की उपलब्धियों को याद करता है। इस समारोह में विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकि शोध संगठन पूरे देश में जश्न मनाते हैं।
11 मई, 1998 को पोखरण में आयोजित परमाणु परीक्षण को याद रखने के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया जाता है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए गर्व का विषय था। यह दिन हमारे दैनिक जीवन में विज्ञान के महत्व की भी प्रशंसा करता है। 1998 में 11 और 13 मई को जब भारत ने राजस्थान के पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए थे। प्रारंभिक पांच परीक्षण 11 मई को आयोजित किए गए थे जब पास के भूकंपीय स्टेशनों में 5.3 रिचटर स्केल के भूकंप को रिकॉर्ड करते समय तीन परमाणु बम विस्फोट किए गए थे। 13 मई को दो परीक्षणों को बनाए रखा गया, तब से भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया जाता है।
भारत में प्रतिभा और क्षमता की कोई कमी नहीं है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफ़ी आगे बढ़ने के बाद भी भारत दुनिया के कई देशों से पिछड़ा हुआ है और उसे अभी बहुत-से लक्ष्य तय करने होंगे। इसीलिए ’11 मई’ का दिन प्रौद्योगिकी के लिहाज से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन 1998 में पोखरण में न सिर्फ सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया गया, बल्कि इस दिन से शुरू हुई कड़ी 13 मई तक भारत के पांच परमाणु धमाकों में तब्दील हो चुकी थी। भारत ने न सिर्फ परमाणु विस्फोट से अपनी कुशल प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया, बल्कि अपने प्रौद्योगिकी कौशल के चलते किसी को कानोंकान परमाणु परीक्षण की भनक भी नहीं लगने दी। अत्याधुनिक उपग्रहों से दुनिया के कोने-कोने की जानकारी रखने वाला अमरीका भी 11 मई, 1998 को भारतीय प्रौद्योगिकी के सामने गच्चा खा गया।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डिफेंस रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट ऑर्गैनाइज़ेशन) भारत की रक्षा से जुड़े अनुसंधान कार्यों के लिये देश की अग्रणी संस्था है। यह संगठन भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक आनुषांगिक ईकाई के रूप में काम करता है। इस संस्थान की स्थापना 1958 में भारतीय थल सेना एवं रक्षा विज्ञान संस्थान के तकनीकी विभाग के रूप में की गयी थी। वर्तमान में संस्थान की अपनी इक्यावन प्रयोगशालाएँ हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा उपकरण इत्यादि के क्षेत्र में अनुसंधान में रत हैं। पाँच हजार से अधिक वैज्ञानिक और पच्चीस हजार से भी अधिक तकनीकी कर्मचारी इस संस्था के संसाधन हैं। यहां राडार, प्रक्षेपास्त्र इत्यादि से संबंधित कई बड़ी परियोजनाएँ चल रही हैं।
इसका मुख्यालय दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के निकट ही, सेना भवन के सामने डी.आर.डी.ओ भवन में स्थित है। इसकी एक प्रयोगशाला महात्मा गाँधी मार्ग पर उत्तर पश्चिमी दिल्ली में स्थित है। संगठन का नेतृत्व रक्षा मंत्री, भारत सरकार, जो रक्षा मंत्रालय में सामान्य अनुसंधान और विकास के निदेशक तथा रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग (डीडीआर व डी) के सचिव भी हैं, के वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा किया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस हर साल 12 मई को नर्सों के अथक प्रयासों और योगदान का धन्यवाद देने के लिए विश्व भर में मनाया जाता है सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा में नर्स अपरिहार्य हैं. नर्स हमारे चिकित्सा संस्थानों में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं और लोगों को स्वास्थ्य रहने में बड़ा योगदान देते हैं. यह दिन उनके योगदान को समर्पित है. नर्स और मिडवाइफ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ये वे लोग हैं जो माताओं और बच्चों की देखभाल के लिए अपना जीवन समर्पित करती हैं; जीवन भर प्रतिरक्षण और स्वास्थ्य सलाह देना; वृद्ध लोगों की देखभाल और आमतौर पर रोजमर्रा की आवश्यक स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करना.कोरोना वायरस से लड़ने में नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के साहसी काम को पूरे विश्व में सराहा जा रहा है. ये वो लोग है जो फ्रंटलाइन पर हम सबके लिए COVID-19 से लड़ने में मदद कर रहे हैं बिना अपनी जान की परवाह किये.
National Nurses Week 2021 is “Frontline Warriors”,
‘नर्स दिवस’ को मनाने का प्रस्ताव पहली बार अमेरिका के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण विभाग के अधिकारी ‘डोरोथी सदरलैंड’ ने प्रस्तावित किया था। अंतत अमेरिकी राष्ट्रपति डी.डी. आइजनहावर ने इसे मनाने की मान्यता प्रदान की। इस दिवस को पहली बार वर्ष 1953 में मनाया गया। अंतरराष्ट्रीय नर्स परिषद ने इस दिवस को पहली बार वर्ष 1965 में मनाया। नर्सिंग पेशेवर की शुरूआत करने वाली प्रख्यात ‘फ्लोरेंस नाइटइंगेल’ के जन्म दिवस 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाने का निर्णय वर्ष 1974 में लिया गया।
नर्सिंग को विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य पेशे के रूप में माना जाता है। नर्सिस को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्तर जैसे सभी पहलुओं के माध्यम से रोगी की देखभाल करने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित, शिक्षित और अनुभवी होना चाहिए। जब पेशेवर चिकित्सक दूसरे रोगियों को देखने में व्यस्त होते है, तब रोगियों की चौबीस घंटे देखभाल करने के लिए नर्सिस की सुलभता और उपलब्धता होती हैं। नर्सिस से रोगियों के मनोबल को बढ़ाने वाली और उनकी बीमारी को नियंत्रित करने में मित्रवत, सहायक और स्नेहशील होने की उम्मीद की जाती है।
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस निम्न वज़ह से मनाया जाता है:-
इस दिन नर्सों के सराहनीय कार्य और साहस के लिए भारत सरकार के परिवार एवं कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगल पुरस्कार की शुरुआत की। यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष फ्लोरेंस नाइटिंगल के जन्म दिन के अवसर पर फ्लोरेंस नाइटिंगल पुरस्कारइ प्रदान किये जाते हैं। यह पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति के द्वारा प्रदान किये जाते हैं इस पुरस्कार में 50 हज़ार रुपए नकद, एक प्रशस्ति पत्र और मेडल दिया जाता है।
मदर्स डे 2021
मां हमारी रक्षा करती है, हमसे प्रेम करती है और हमको एक मजबूत इंसान बनाने के लिए आपनी खुशी की परवाह नहीं करती है. मां के बिना हमारे जीवन की कल्पना भी करना भी असंभव सा लगता है. मां एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही मन में कई तरह के इमोशन्स उमड़ पड़ते है. मां की ममता को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल मई के दूसरे हफ्ते के संडे को मदर्स डे मनाया जाता है. इस साल यानि 2021 को 9 मई के दिन मदर्स डे मनाया जाएगा. यह दिन संडे को ही मनाया जाता है क्योंकि इस दिन सबकी छुट्टी रहती है, ताकि ये दिन मां के साथ अच्छी तरह सेलिब्रेट किया सके. अधिकांश देशों में मदर्स डे हर साल मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है, जबकि कई देश और लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग तिथियों पर इस मदर्स डे मनाते हैं.
विश्व रेड क्रॉस दिवस 2021
हर साल आठ मई को वर्ल्ड रेड क्रॉस डे मनाया जाता है. इसी दिन रेड क्रॉस सोसायटी के संस्थापक जॉन हेनरी ड्यूडेंट का जन्म हुआ था. उनके जन्मदिन को ही वर्ल्ड रेड क्रॉस दिवस के रूप में मनाया जाता है. ये संस्था दुनियाभर में हिंसा, युद्ध या आपात स्थिति में पीड़ित लोगों की मदद और उनकी सेवा करती है. इस संस्था का उद्देश्य किसी युद्ध या महामारी के समय लोगों की रक्षा करना और उन्हें नया जीवन देना है.
इंटरनेशनल कमिटी ऑफ द रेड क्रॉस (आईसीआरसी) की स्थापना साल 1863 में हुई थी. इसका मुख्यालय स्विटरजरलैंड के जेनेवा में है. इसी संस्था ने हर साल आठ मई को रेड क्रॉस दिवस मनाए जाने की मांग की थी. 8 मई 1948 को पहला वर्ल्ड रेड क्रॉस डे मनाया गया.
सोल्फेरिनो का युद्ध बना रेड क्रॉस की स्थापना की वजह
साल 1859 में जॉन हेनरी ड्यूडेंट अल्जीरिया में व्यापार करने के लिए फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय मिलने गए. लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी. नेपोलियन तृतीय से मुलाकात नहीं हुई तो हेनरी इटली चले गए. वहां उस वक्त सोल्फेरिनो का युद्ध चल रहा था. युद्ध में हर दिन हजारों सैनिक मारे जा रहे थे और घायल हो रहे थे. वहां उन घायल सैनिकों के इलाज का कोई साधन उपलब्ध नहीं था. सैनिक जमीन पर पड़े दर्द से चिल्ला रहे थे. हेनरी से खौफनाक दृश्य देखा नहीं गया. उन्होंने कुछ लोगों को इकट्टा किया और खुद ही घायलों की मदद करने लगे. उनका इलाज करवाया और उनके लिए खाने का इंतजाम किया. यहीं नहीं, घायलों के परिवारों को पत्र लिखकर जानकारी भी दी.
हेनरी इस घटना से काफी आहट थे. उन्होंने 'ए मेमरी ऑफ सोल्फेरिनो' (A Memory of Solferino) नाम की एक किताब लिखी, जिसमें इस पूरे भयावह दृश्य के बारे में बताया. किताब में अंत में उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना करने सुझाव दिया था, जो युद्ध या आपात स्थिति में घायल लोगों की मदद करें. ऐसी सोसायटी जो बिना भेदभाव के दुनिया के हर वर्ग के लोगों की रक्षा करें.
रेड क्रॉस की स्थापना
हेनरी के इस सुझाव को गंभीरता से लिया गया. किताब प्रकाशित होने के तीन साल बाद हेनरी के सुझाव पर पांच सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया गया. इस कमेटी का उद्देश्य हेनरी के सुझाव पर चर्चा करना था. कुछ महीने बाद अक्टूबर 1863 में कमेटी ने एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. जिसमें 16 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए. इस दौरान इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस के गठन का ऐलान किया गया और दूसरे देशों से भी संगठन की स्थापना करने की अपील की गई. इसके बाद से हेनरी ने अपना जीवन पूरी तरह से जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया. उनकी इसी सेवा के लिए साल 1901 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया.
आज दुनियाभर के करीब 200 देश रेड क्रॉस सोसायटी से जुड़े हुए हैं. भारत में रेड क्रॉस की स्थापना 1920 में पार्लियामेंट्री एक्ट के अनुसार हुई. देश में रेड क्रॉस की करीब 700 ब्रांच हैं.
आज भी सेवा को उसी तरह से तत्पर
आज जहां वैक्सीन बनाने वाले देशों से पेटेंट में छूट की मांग की जा रही है. यह साफ दिखाता है कि दुनिया को मानवता के लिए उसी तरह से एकजुट होना है जैसे के रेड क्रॉस सोसाइटी होती है. कोरोना काल में चाहे मास्क या ग्लब्स बांटना हो या फिर ऑक्सीजन सिलेंडर की उपलब्धता हासिल करना हो, रेडक्रॉस कोरोना के खिलाफ उसी तरह अपनी सेवाएं दे रही है जैसेवह युद्ध में देती है.
रबींद्रनाथ टैगोर जयंती 2021
रबींद्रनाथ टैगोर जयंती 2021, 7 मई को मनाई जाएगी। रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म पश्चिम बंगाल कलकत्ता शहर में 7 मई 1861 को हुआ। रबींद्रनाथ टैगोर के पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। पांच भाई-बहनों में रबींद्रनाथ टैगोर सबसे छोटे थे। साहित्य, संगीत और देश की आजादी में रबींद्रनाथ टैगोर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टैगोर के अविस्मरणीय योगदान के लिए हर साल 7 मई को रबींद्रनाथ टैगोर के जन्मदिन को रबींद्रनाथ टैगोर जयंती के रूप में मनाया जाता है। रबींद्रनाथ टैगोर जयंती के अवसर पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री समेत सब उन्हें याद करते है।
रबींद्रनाथ टैगोर एक बहु-प्रतिभाशाली व्यक्तित्व थे जिनकी नई चीजें सीखने की बहुत इच्छा थी। साहित्य, संगीत और उनके कई कार्यों में उनका योगदान अविस्मरणीय है। न केवल पश्चिम बंगाल में बल्कि पूरे भारत में लोग उन्हें और उनकी जयंती पर उनके योगदान को याद करते हैं। यहां तक कि 1913 में, भारतीय साहित्य में उनके महान योगदान के लिए उन्हें सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। क्या आप जानते हैं कि वह यह पुरस्कार पाने वाले एशिया के पहले व्यक्ति थे? हम यह नहीं भूल सकते कि वह वह व्यक्ति है जिसने भारत के राष्ट्रीय गान की रचना की थी। उनका जन्म 7 मई, 1861 को देबेंद्रनाथ टैगोर और सरदा देवी से जोरासांको हवेली में हुआ था, जो कोलकाता (कलकत्ता) में टैगोर परिवार का पैतृक घर है। अपने भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे। उन्होंने अपनी माँ को खो दिया जब वह बहुत छोटी थी, उनके पिता एक यात्री थे और इसलिए, उन्हें ज्यादातर उनके नौकरों और नौकरानियों द्वारा उठाया गया था। बहुत कम उम्र में, वह बंगाल पुनर्जागरण का हिस्सा थे और उनके परिवार ने भी इसमें सक्रिय भागीदारी की। 8 साल की उम्र में, उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया और सोलह साल की उम्र तक, उन्होंने कलाकृतियों की रचना भी शुरू कर दी और छद्म नाम भानुसिम्हा के तहत अपनी कविताओं को प्रकाशित करना शुरू कर दिया।
1877 में उन्होंने लघु कहानी 'भिखारिनी' और 1882 में कविताओं का संग्रह 'संध्या संगत' लिखा। वे कालिदास की शास्त्रीय कविता से प्रभावित थे और उन्होंने अपनी खुद की शास्त्रीय कविताएँ लिखना शुरू किया। उनकी बहन स्वर्णकुमारी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। 1873 में, उन्होंने कई महीनों तक अपने पिता के साथ दौरा किया और कई विषयों पर ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने सिख धर्म सीखा जब वह अमृतसर में रहे और लगभग छह कविताओं और धर्म पर कई लेखों को कलमबद्ध किया। रबींद्रनाथ टैगोर की शिक्षा उनकी पारंपरिक शिक्षा ब्राइटन, ईस्ट ससेक्स, इंग्लैंड में एक पब्लिक स्कूल में शुरू हुई। 1878 में, वह अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गए। उन्हें स्कूली सीखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और बाद में उन्होंने कानून सीखने के लिए लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन उन्होंने इसे छोड़ दिया और शेक्सपियर के विभिन्न कार्यों को खुद ही सीखा। उन्होंने अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत का सार भी सीखा; उन्होंने भारत लौटकर मृणालिनी देवी से शादी की। रबींद्रनाथ टैगोर का शांति निकेतन उनके पिता ने ध्यान के लिए एक बड़ी जमीन खरीदी और इसे शांतिनिकेतन नाम दिया। देबेंद्रनाथ टैगोर ने 1863 में एक 'आश्रम' की स्थापना की।
1901 में, रवींद्रनाथ टैगोर ने एक ओपन-एयर स्कूल की स्थापना की। यह संगमरमर के फर्श के साथ एक प्रार्थना कक्ष था और इसे 'द मंदिर' नाम दिया गया था। इसका नाम 'पाठ भवन' भी रखा गया और इसकी शुरुआत केवल पाँच छात्रों से हुई। यहां कक्षाएं पेड़ों के नीचे आयोजित की जाती थीं और शिक्षण की पारंपरिक गुरु-शिष्य पद्धति का पालन करती थीं। शिक्षण की यह प्रवृत्ति शिक्षण की प्राचीन पद्धति को पुनर्जीवित करती है जो आधुनिक पद्धति के साथ तुलना करने पर लाभदायक सिद्ध हुई। दुर्भाग्य से, उनकी पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु हो गई और वे अकेले चले गए। उस समय वह बहुत परेशान था। इस बीच, उनके काम बढ़ने लगे और बंगाली के साथ-साथ विदेशी पाठकों के बीच अधिक लोकप्रिय हो गए। 1913 में, उन्होंने मान्यता प्राप्त की और साहित्य में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अब, शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल में एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय शहर है। आपको बता दें कि रवींद्रनाथ टैगोर ने शिक्षा के एक केंद्र की कल्पना की थी, जिसमें पूर्व और पश्चिम दोनों का सर्वश्रेष्ठ होगा। उन्होंने पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसमें दो परिसर होते हैं एक शान्तिनिकेतन में और दूसरा श्रीनिकेतन में। श्रीनिकेतन कृषि, प्रौढ़ शिक्षा, गाँव, कुटीर उद्योग और हस्तशिल्प पर केंद्रित है।
रबींद्रनाथ टैगोर: साहित्यिक रचनाएँ जपजोग: 1929 में प्रकाशित, उनका उपन्यास वैवाहिक बलात्कार पर एक सम्मोहक है। नस्तनिरह: 1901 में प्रकाशित। यह उपन्यास रिश्तों और प्रेम के बारे में है, जो अपेक्षित और अप्राप्त दोनों हैं। गारे बेयर: 1916 में प्रकाशित। यह एक विवाहित महिला के बारे में एक कहानी है जो अपने घर में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रही है। गोरा: 1880 के दशक में, यह एक विस्तृत, संपूर्ण और अत्यंत प्रासंगिक उपन्यास है, जो धर्म, लिंग, नारीवाद जैसे कई विषयों से संबंधित है और आधुनिकता के खिलाफ परंपरा भी है। चोखेर बाली: 1903 में, एक उपन्यास जिसमें रिश्तों के विभिन्न पहलू शामिल हैं। लघुकथाएँ: भिखारीनी, काबुलीवाला, क्षुदिता पासन, अटटू, हैमंती और मुसल्मानिर गोलपो आदि। कविताएँ: बालको, पुरोबी, सोनार तोरी और गीतांजलि हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने बंगाली साहित्य के आयामों को बदल दिया है जैसा कि पहले देखा गया था। कई देशों ने दिग्गज लेखक को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी प्रतिमाएं भी खड़ी की हैं। लगभग पांच संग्रहालय टैगोर को समर्पित हैं जिनमें से तीन भारत में और शेष दो बांग्लादेश में स्थित हैं। उन्होंने अपने अंतिम वर्षों को गंभीर दर्द में बिताया और 1937 में भी, वे एक कोमाटोस स्थिति में चले गए। काफी पीड़ा के बाद, 7 अगस्त, 1941 को जोरासांको हवेली में उनका निधन हो गया, जहां उनका लालन-पालन हुआ।
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