श्रमिक दिवस पर कविता
- मैं मजदूर हूँ मजबूर नहीं यह कहने मैं मुझे शर्म नहींअपने पसीने की खाता हूँमैं मिट्टी को सोना बनाता हूँ
- हर कोई यहाँ मजदूर हैं चाहे पहने सूट बूट या मैलामेहनत करके कमाता हैंकोई सैकड़ा कोई देहलाहर कोई मजदूर ही कहलाता हैंचाहे अनपढ़ या पढ़ा लिखा
- जिसके कंधो पर बोझ बढ़ा वो भारत माँ का बेटा कौनजिसने पसीने से भूमि को सींचावो भारत माँ का बेटा कौनवह किसी का गुलाम नहींअपने दम पर जीता हैंसफलता का एक कण ही सहीलेकिन हैं अनमोल जो मजदूर कहलाता हैं..
- हर इमारत की नींव हैं अमीरों की तक़दीर हैंखून पसीना बहाकर अपनापूरा करते वो अमीरों का सपनादो वक्त की उसे मिले ना मिलेपर उसी के हाथो करोड़ो की तक़दीर लिखेमाना उसकी किस्मत हैंअभी नहीं हैं एशो आरामपर उसको ना भुलाना तुमना बनाना बैगाना तुमदेना उसे उसका हक़मजदूर हैं वह मेहनती शख्स
- मेहनत उसकी लाठी हैं मजबूती उसकी काठी हैंबुलंदी नहीं पर नीव हैंयही मजदूरी जीव हैं.
- सफलता के मार्ग में योगदान अनमोल हैं चाहे हो मालिक या कोई नौकरकोई ईकाई तुच्छ नहींकहने को एक छोटा लेबर ही सहीपर उसी को रास्ते का ज्ञान हैंघमंड ना करना इस ऊंचाई का कभीतेरे कंधो पर इनके पसीने का भार हैं
- सबका अपना मान हैं
- मजदूर ऊँचाई की नींव हैं गहराई में हैं पर अंधकार में क्यूँउसे तुच्छ ना समझानावो देश का गुरुर हैं
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